मुंबई। (एस.ए.भाटी) Ayurvedic Treatment For Asthma: भागदौड़ भरा जीवन हर किसी का हैं, अक्सर आदमी अपने ऑफिसियल और व्यक्तिगत कामों में बिजी हैं, जहां देखे वहीं भारी भरकम गर्दी, भीड़-भाड़ सफोकेशन हैं, जैसा कि हम देख रहे हैं, आमतौर पर ग्रामीण जीवन को छोड़कर सभी बड़ी मेट्रो सिटी में प्रदूषण और गाडि़यों के धुयें से अक्सर रोजाना सफर करने वालों को सांस उठने और कई तरह के फेफड़ों को प्रभावित करने वाली तकलीफ आम हो गई है।
दुनिया भर में लगभग 200 से 250 मिलियन (20 से 25 करोड़) लोग अस्थमा (दमां) से प्रभावित हैं, और हर साल लगभग 250,000 लोग अस्थमा के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में एशिया में अस्थमा का दर कम है। विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में अस्थमा अधिक आम है। जैसा कि देखा जा रहा हैं, कि आजकल के युवा शहर में बनी छोटी-छोटी सिगरेट बीड़ी की दुकानों के पास खड़े रहकर स्मोकिंग के नशे में डूब रहे हैं. इसकी वजह से कम उम्र में ही युवाओं को अस्थमा जैसी बीमारी हो रही है. इस आधुनिकरण-औद्योगिकीकरण वातावरण में प्रदूषण और मिलावटी
खानपान के कारण लगभग 40 प्रतिशत लोग अस्थमा के शिकार हैं
अस्थमा किस तरह से बढ़ता हैं, आईये जानते हैं – (Trigger Factors For Asthma) अस्थमा सामान्य व्यक्ति में किस तरह प्रवेश करता हैं, इसके बारे में जानिये – अस्थमा ज्यादातर बचपन में शुरू होता है। जिसके बारे में बताया जाता हैं, कि अस्थमा एक दीर्घकालिक (क्रोनिक) फेफड़ों की बीमारी है, जो वायुमार्ग में सूजन (इन्फ्लमेशन) पैदा करती है, और जिसमें वायुमार्ग संकुचित होता है। वायुमार्ग वे नलिकाएं (ब्रोन्कियल) होती हैं, जो फेफड़ों में हवा को अंदर और बाहर करती हैं। अस्थमा वाले लोगों में वायुमार्ग संवेदनशील होते हैं, और विभिन्न पदार्थों पर प्रतिक्रिया करते हैं। यदि वे प्रतिक्रिया करते हैं, तो वायुमार्ग सूज जाते हैं, और संकीर्ण हो जाते हैं, इसलिए फेफड़ों में हवा कम पहुंचती है।
अस्थमा सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन यह ज्यादातर बचपन के दौरान शुरू होता है। छोटे बच्चे जिन्हें अकसर घरघराहट होती है, जिससे श्वसन संक्रमण होता है, उनमें ऐसे अस्थमा विकसित होने का सबसे अधिक खतरा होता है, जो 6 साल की उम्र के बाद भी चलता है। अस्थमा की बिमारी के बारे में जिसे एक ऐसी साँस की बीमारी कहते है जिसमें (वायुमार्ग) गर्दन उसमें सूजन और तकलीफ होना शुरू हो जाती हैं, जिससे बार-बार गला से घरघराहट जैसी आवाज आना, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सीने में जकड़न होना शुरू हो जाता हैं, यह एक परिस्थिति होती हैं, जो कि सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करती है, जैसा कि देखा जाता हैं, अस्थमा की समस्या अक्सर बचपन से ही शुरू होती है।
Ayurvedic Treatment For Asthma: अस्थमा की बिमारी से कैसे बचें –
राजस्थान औषधालय (आरएपीएल ग्रुप) की एम. डी. आयुर्वेदा एक्सपर्ट डॉ. भक्ती के अनुसार अस्थमा के लक्षण विभिन्न कारकों से पैदा होते हैं, जबकि ये ट्रिगर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। अस्थमा के लक्षणों को कंट्रोल करने में मदद के लिए ट्रिगर्स की पहचान करना और उससे बचना महत्वपूर्ण होता है। अस्थमा को हम आसानी से समझने के लिए इसके बारे में बात करेंगे कि इसमें कितने सामान्य प्रेरक घटक (Trigger) होते है।
- एलर्जी के रूप मेें ये पदार्थ जो एलर्जी की प्रतिक्रिया का कारण बनते हैं, अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर कह सकते हैं। सामान्य तौर पर एलर्जी के शुरूआती दौर में धूल के कण, फफूंद बीजाणु (Mold Spores), पालतू जानवरों की रूसी और झिंगुर (Cockroach) से होने वाली एलर्जी भी शामिल हैं।
- इसमें सॉंस की नली में फैलने वाले संक्रमण और वायरल श्वसन संक्रमण के कारण सामान्यतः सर्दी, फ्लू या एलर्जी वाली सर्दी – खाँसी, अस्थमा को और अधिक बढ़ा सकती हैं।
- इसके साथ ही ऐसे गर्म मसाले से बने पदार्थ जो हमारे दैनिक दिनचर्या में हो रहे उत्तेजक तत्व जिससे अस्थमा होने की संभावना होती हैं, इन्हीें लक्षणों को ट्रिगर कह सकते हैं। इनमें तेज़ गंध, इत्रा, धुआँ (सिगरेट का धुआँ, लकड़ी का धुआँ), रासायनिक धुआँ और वायु प्रदूषण शामिल भी हैं।
- व्यायाम शारीरिक गतिविधि या व्यायाम कुछ व्यक्तियों में अस्थमा के लक्षण पैदा कर सकता है। इसे व्यायाम-प्रेरित अस्थमा के रूप में जाना जाता है।
- ठंडी हवा में सांस लेने से श्वांस की नली में सिकुड़न आ जाती हैं, जिससे अस्थमा के लक्षण हो सकते हैं।
- मौसम में अचानक बदलाव, जैसे तापमान में गिरावट, कुछ लोगों में अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर कर सकता है।
- ऐसे व्यवसाय फैक्ट्री जहां जोखिम होने जैसे रसायन, धूल, गैस या धुआं, अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर या खराब कर सकते हैं।
- तनाव और भावनात्मक कारक या उत्तेजना कुछ व्यक्तियों में अस्थमा के लक्षणों को लाने में योगदान देती है।
- ऐसिडिटी पेट से ऊपर गले मे आनेवाला एसिड (Gastroesophageal Reflu) से परेशानी होने के कारण कुछ व्यक्तियों में अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर कर सकता है।
- अस्थमा में सबसे ज्यादा ध्यान रखना महत्वपूर्ण है, कि ट्रिगर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं, और अस्थमा प्रबंधन योजना के हिस्से के रूप में अलग-अलग ट्रिगर की पहचान करना और उनसे बचना सहायक है। यदि आपको अस्थमा है, तो किसी एलर्जी विशेषज्ञ या सॉंस रोग विशेषज्ञ जैसे स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर के साथ सलाह लेने से आपको अपने अस्थमा की पहचान करने और आपके लक्षणों को कंट्रोल रखने के लिए एक व्यक्तिगत अस्थमा नियंत्रण योजना विकसित करने में मदद मिल सकती है।
12 से 40 साल की आयु में रोगी आ रहे सामने
आयुर्वेदा के विशेषज्ञों से मिली जानकारी के अनुसार अस्थमा के मरीजों की अब कोई उम्र और सीमा नहीं है. अस्थमा की बीमारी बच्चा हो या बुजुर्ग सभी में देखी जा रही है। पहले जन्म होने के बाद जो भी बच्चे अस्थमा से पीडि़त होते थे, उनका अस्थमा 8 या 10 साल की आयु तक आते-आते ठीक हो जाता था, लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. आजकल ओल्ड एज फैक्टर भी खत्म हो गया है. अब 12 से 30-40 साल की आयु में भी अस्थमा के रोगी आ रहे हैं. इस तरह ही स्थिति बेहद ही चिंताजनक है l
कैसे दूर हो अस्थमा की बिमारी, आईये जानते हैं, आयुर्वेदिक जड़ी बूटी से बनी दमा बूटी चूर्ण, अस्थमा की तकलीफ से मिलेगा छुटकारा राजस्थान
राजस्थान औषधालय (आरएपीएल ग्रुप) की दमा बूटी चूर्ण Dama Buti Churna एक आयुर्वेदिक दवा है जिसे विशेष रूप से अस्थमा और सांस संबंधित बीमारियों के लक्षणों को कम करने के लिए बनाया गया है।
- इस दवां में शक्तिशाली प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और घटकों (Ingredients) का मूल रूप से इस्तेमाल कर बनाया गया है, जिन्हें सांस स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और वायुमार्ग में सूजन को कम करने और की उनकी क्षमता को दूर करने के लिए सावधानीपूर्वक चुना गया है।
- इस चूर्ण में मौजूद तत्व बलगम के उत्पादन को कम करने, वायुमार्ग को चौड़ा करने और फेफड़ों की कार्यप्रणाली में सुधार करने के लिए एक साथ काम करते हैं, जिससे अस्थमा से पीडि़त व्यक्तियों के लिए सांस लेना आसान हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त, चूर्ण प्रतिरक्षा प्रणाली (Immunity System) को बढ़ावा देने में मदद करता है, जो उन लोगों के लिए विशेष रूप से सहायक हो सकता है जो बार बार होने वाले दमे के दौरे (Asthmatic Attack) से पीडि़त हैं।
- नियमित उपयोग के साथ, हर्बल दमा बूटी चूर्ण, अस्थमा के लक्षणों से दीर्घकालिक राहत प्रदान कर सकता है, और समग्र सांस स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है।
- अर्जुन और वासा के एंटी-एलर्जी और एंटी-अस्थमा गुण, अस्थमा के दौरे के समय का अंतराल, गंभीरता और पुनरावृत्ति को कम करने में सहायता करते हैं।
- कंटकारी, शुंठी और पिप्पली में म्यूकोलाईटिक और ब्रोन्कोडायलेटर गुण होते हैं जो बलगम को बाहर निकालने और छाती में जमाव को दूर करने में मदद करते हैं, जिससे सामान्य साँस लेने में आसानी होती है।
- सांस की प्रणाली को बार बार होने वाले विषाणु जनित (Allergic Recurrent Infections) संक्रमणों से मजबूत और सुरक्षित रखता है।
आयुर्वेदा एक्सपर्ट डॉ. भक्ती ने बताया कि राजस्थान औषधालय के दमांबूटी चूर्ण (Dama Buti Churna) में सम्पूर्ण सुरक्षित आयुर्वेदिक दवा हैं, जो प्राकृतिक तरीके से दमां और सांस से सम्बंधित बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है. याद रखें, अस्थमा एक पुरानी श्वसन स्थिति है, और हर एक अस्थमा पीडि़त व्यक्ति के लिए अलग-अलग ट्रिगर और प्रबंधन रणनीतियाँ अलग-अलग हो सकती हैं। इसलिए डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है, जो आपकी विशिष्ट स्थिति के आधार पर व्यक्तिगत मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर सकते है। वहीं राजस्थान औषधालय को देश की प्रतिष्ठ्ति best Ayurveda pharmaceutical companies in India में शामिल है।